बाकी शहर मे एक कुत्ता रहता था. बचपन से उसका पालन-
पोशण इसी शहर मे हुआ था. अतएव शहर के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था गेरु.. खाने-पीने का बडा सौखिन नेक दिल, परोपकारी स्वभाव, स्वामीभक्त, आदि सारे सदगुन थे गेरु मे.. उसका मालिक छोटा सा नादान बालक डब्बू था| डब्बू भी स्कूल से आने के बाद गेरु के ही साथ खेलता, जो कुछ खाता गेरु को भी खिलाता| मा को तो ये सब पसंद था, पर डब्बू के पिता रमजीद खान को यह सब न पसंद था|| एक दिन शाम के वक्त डब्बू और गेरु दोनो सडक पर गस्त कर रहे थे| लाजवाब मौसम, बरसात का मौसम विदाई को था, तो सर्दी क मौसम आगमन को|| “ढलता सूरज, उगता चांद! धरती मे बहती, सर-सर सुहानी मदमस्त हवा| जो मन को बहका दे, नियत बदल दे|| अचानक एक रहीसजादे की बेटी दिखती है जो अपनि कुतिया के संग कार मे शायद कही जा रही थी, या फिर ऐसा मौसम देख उसका भी दिल मचल उठा और वो निकल पडी|| “स्वेत वस्त्र, सर मे लाल टोपी, नाजुक हाथ थे दोनो के!! डब्बू कि नजर लडकी पर, तो कुत्ते की नजर कुतिया पर!!” दोनो भी पीछे मुडकर एक-दूसरे को देख रही थी| पर कार थी जो दूरि कि दीवार बढाती और बनाती जा रही थी| और दूरि इतनी बढ गैइ कि आखों मे सिर्फ प्रतिमा बस बची| सर लटकाये निराशापूर्वक दोनो घर लौट पडे| दोनो मौन, कदमो कि थपथप थी, बस! और हो भी क्या सकता था| जो होना था सो हो गया.! “रात भर नींड न आई डब्बू को, कुत्ता भी किसी के इंतजार मे सो न सका| बदकिसमिती थी, नजरो का सबसे बडा गुनाह था!!” सुबह होते हि नही, सूरज की लालिमा की पतली किरन को देखकर लपकते हुए कुत्ता जा पहुचा सडक मे, कुछ समय बाद डब्बू भी स्कूल के बहाने पीठ मे बस्ता लादकर कुत्ते के बगल मे आ बैठा| कुत्ते की जीभ से तो डब्बू के दिल से लार टपक रही थी| “पुरा दिन बीत गया, धूप मे तपते रहे.! ळेकिन, बच्चा दिल प्यास हि रहा. कुछ न पाया राह मे निराशा के सिवा.!!” दोनो को आंतरिक बडा कस्ट हुआ| आखिर कब तक ये प्रेम का बेदर्दी भगवान हम आसिको कि परीक्षा पर परीक्षा ले-ले कर हम बेकसूरो को तडपायेगा|| “ शाम की बदली हटी, रात का अंधेरा आया| दोनो अंतर्मन से बातें कर रहे थे, कि- कल भोर से ही चलेंगे- हम तुम उनको ढूढने सर्वत्र..!!” इसी वार्तालाप के बीच मे ही मां कि आवाज आई, बेटा खाना खा लो. और चलो सो जाओ काफी रात हो चुकी है| “कोमल सूरज संग किरने आने को थी तैयार, कुत्ता समझ गया था आलम – ळगाई जोर गुहार.. डब,,,,,ब,,,,,ब,,,,,,उ,,,,,,,!!!!!!!!” फेक के चादर डब्बू भागा, आज तो स्कूल मे भी अवकाश था; रविवार का| और अब दोनो चल दिये दोनो कि खोज को, पुरा दिन भुखे-प्यासे बीता दिया, आज जीवन मे पहली बार करीबन दस मील पैदल चला था डब्बू| कुत्ते की भी हालत बेहाल हो गैइ, पर आज फिर से निराशा ही हाथ लगी| ऐसा करते-करते कइ महिने बीत गये एक दिन कुछ यूं होता है-- “डब्बू-गेरु बैथे थे- छत उपर , सूखी घास की सैया पर| तभी अचानक वो दिखी, झटपट भागे- कुछ भूल गये; वो थी दूरी||” गिरते ही गेरु का मुंह टेढा हो गया, बेचारे की दाईं आंख मे चोट आई; जिसके कारन वो आंख दबी रही, कुतिया ऐसा देख शरमा सी गयि| डब्बू कि तो मानो कमर टूट गयि, अब ढूढना भी बंद हो जयेगा|| दोनो को रमजीद खां डाक्टर के पास ले गये;डाक्टर राजन कइ दिनो तक ईलाज करते है, हर तरह की महन्गी से महन्गी दवाई आजमाते है; पर तबियत मे बिल्कुल भी सुधार नहि होता.. “जैसे के तैसे थे, न खाते थे, ना पीते थे न रोते, न ही हसते ना ही कुछ कहते थे||” एक दिन डाक्टर की बेटी आपने पापा से मिलने आती है, डां. डब्बू के ईलाज मे जुटे थे| डब्बु पलंग मे लेता था, पलंग के नीचे ऊसका साथी घायल सा पडा था| लदकी को देखते ही कुत्ता भोका, लडके ने आंख खोली.|| “देख सामने ऊसको अपने, झटपट बाहर भागा; ळडकी भागी, कुत्ता भागा; देख डां भी भागा|| बाहर जाते ही चिपक गया, लडका-लडकी से; कुत्ता-कुतिया से||’’ तभी उसके पिता रमजीद खां, डब्बू को देखने के लिये ऊसकी मा के साथ पहुच जाते है, और यह नजारा डां के साथों- साथ वो भी देखते है| वक्त की मांग को देख, आपस मे सलाह- मसवरा करके दोनो, दोनो-दोनो की सादी करवाने का निर्णय लेते है| “डब्बू कि गोद मे कुत्ता, तो निम्मू कि गोद मे चंदा| देख शादी, कहा लोगो ने- कुत्ते से बच्चे का, कुत्ते और कुतिया का; कमल सा कोमल है प्यार..!!!!!!” अंश कुमार तिवारी “कमल” तिवारी....
तिवारी मतलब शेर, शेर धीमा नही बोलता.. उसे तेज दहाडने की आदत होती है हम भी वैसे ही है...! बंधन मे रहना पसंद नही, जो कर दिया उसकी परवाह नही..! जंहा जाऐ अपनी एक छाप छोड दे,. ताकि लोग याद रखे कि कोई था...!!अंश आर्य तिवारी 'कमल' |
AuthorAnsh Arya Tiwari 'K @ mL' Archives
October 2017
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